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2014 से इस देश में भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को देश की जनता ने न सिर आंखों पर बिठाकर भारत के प्रधानमंत्री के पद पर सत्तासीन किया है, बल्कि समाज के सभी वर्गों ने तत्कालीन चुनाव में सर्वाधिक वोट देकर पार्टी को विजय दिलाई थी। 2019 में पुनः प्रधानमंत्री के पद पर प्रधानमंत्री के पद पर वे आसीन हुए। भारत की जनता ने श्री मोदी को और भारतीय जनता पार्टी को सर्वाधिक विजयी मत देकर चुना। आज श्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर पुनः जनता की सेवा विशेष प्रधान सेवक और चौकीदार के रूप में कर रहे हैं। क्या ऐसे शब्द प्रधान सेवक और चौकीदार जो प्रधानमंत्री मोदीजी के लिए चुने गए हैं, उनकी महत्ता केवल पर्याय मात्र ही है, या ऐसे शब्दों के निहितार्थ सच भी हैं। आज हमारे देश में बहुत समस्याएं हैं, जिनका हमें सामना करना पड़ रहा है। अगर अखंड भारत का निर्माण करना है तो हम सेवकों को मिलकर हल करना पड़ेगा। जैसे- बेरोजगारी, गिरती विकास व सकल घरेलू उत्पाद की दर, महंगाई, भ्रष्टाचार, शिक्षा और स्वास्थ्य में गिरावट, रोगों की रोकथाम, बढ़ती हुई जनसंख्या इत्यादि। यह ध्यान रखें कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है। उसका पालन मानवीय सेवा के रूप में सभी प्रधान सेवकों को करना होगा। यह लोकतांत्रिक दौर है। घर-परिवार, समाज और राष्ट्रसेवा के प्रति सभी की जिम्मेदारी है, जिसके द्वारा राष्ट्र को मजबूत करना है। सामाजिक बुराइयों, अंधविश्वास और हर तरह की जाति-धर्म, वर्ग, नस्ल, रंग, क्षेत्र और भाषायी आधार पर विभाजित करने वालीं शक्तियों को नष्ट कर देना है। ऐसी हर तरह की सामाजिक बेड़ियों को काटकर फेंक दिना है, जो मानवमात्र के दिलों में दरारें पैदा करती हैं। उन्हें एक-दूसरे से बांटती हैं। तभी सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय एकता को बल मिलेगा। राष्ट्र के ऊपर संकट के मंडराते हुए काले बादल रूपी खतरों को टाला जा सकता है। यह सत्ता और शासन को भी समझना होगा कि जनता के ऊपर किये गए जुल्म, ज्यादती और तानाशाही से देश और प्रदेश में शासन चलाने वालों के दिन लद चुके हैं। आज लोकतंत्र पहले से ज्यादा कारगर और मजबूत है। सामाजिक रूप में कमजोर, असहाय, निर्बल, वंचित वर्ग तथा मजदूर गरीब और आदिवासियों की समस्याएं अब भी जस की तस हैं। उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति के अलावा बदहाली, तंगी और बेरोजगारी तथा सामाजिक सुरक्षा की नीति पर आवश्यक कार्यवाही कर ही देश समुचित तौर पर विकसित हो सकता है।

आज के दौर में सीमा पर खतरे और बढ़ रहे हैं। वहां सैन्य शक्तियों को मजबूती देना सरकारों का प्रथम दायित्व है। वहीं देश के अंदर भी आम समस्याओं का समाधान करना है। पहला अनेकों सर्व सुविधा संपन्न इंडिया और दूसरा भारत की सर्व सुख साधन वंचित भारत की जनता। जहां एक तरफ भारत देश के अनेकों प्रदेश में सभी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर चरम पर है। वहीं दूसरी तरफ महंगाई और भ्रष्टाचार भी अपने पूरे शबाब पर है। अगर हम देखें तो आज भी शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं, शोध का गिरता स्तर, यातायात सेवाओं का प्रभावहीन होना, लघु, मध्यम व दीर्घ उद्योग, कृषि और किसानों की विपणन व्यवस्था, सड़क, परिवहन, शुद्ध पेयजल, संसाधनों का विकास, चिकित्सा और स्वास्थ्य सुरक्षा सशक्तिकरण और मानवाधिकार में प्रगति और विकास, सामाजिक न्याय व असमानता आदि समस्याओं पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। ऐसे क्षेत्रों में जहां विकसित देश जैसे- अमेरिका, चीन, रूस, जापान, कनाडा, इटली, जर्मनी तथा ऑस्ट्रेलिया में पर्याप्त और लगातार शोध और संसाधन हो रहे हैं। वहीं हमारे देश भारत में नेताओं द्वारा आलस्य कारगर नीति पर जोर न देना व अनर्गल प्रलाप जारी है। अगर सर्वेक्षण करें तो हमारे देश में बौद्धिक वर्ग को अब तक सर्वाधिक नुकसान हुआ है। इससे सभी तरह की संस्थाओं के अस्तित्व पर खतरे का साया मंडरा रहा है। आज नवउदारीकरण के नाम पर व्यापक तौर पर सरकारी योजनाएं लागू हैं। ये जनकल्याण का दावा तो करतीं हैं, परंतु तकनीकी तौर पर सभी लोगों तक नहीं पहुंच पायी है। लगता है जन योजनाओं को ज्यादा सशक्त, लचीला और व्यावहारिक बनाना न केवल वक्त की मांग है, बल्कि जनता के हित में है। हमारे लोगों को देश के लोगों की तरफ ध्यान देने और परवाह करने की जरूरत पर बल देना होगा। तभी लोगों की समस्याओं तथा उनके बीच की असमानताओं को दूर किया जा सकता है। सामाजिक न्याय और खुशहाली सभी के जीवन में लाई जा सकती है। परिणामतः नये भारत का उदय और जनसमस्याओं का अंत होगा।


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।


यह भारतीय संतों का उद्घोष है, जिसमें विश्वकल्याण की असीम भावना निहित है।

लेखकः डा. पूर्णचंद्र उपाध्याय, वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर, मानवशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयोगराज, उत्तरप्रदेश।

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