जब उसने मुझे
पहली बार डाँटा था
मैं रोयी थी...
![](https://static.wixstatic.com/media/2af530_2eda869d1bee432993426eea3e105a2a~mv2.jpg/v1/fill/w_400,h_201,al_c,q_80,enc_auto/2af530_2eda869d1bee432993426eea3e105a2a~mv2.jpg)
मुझे चुप कराते हुए
उसने अपनी डाँट को
केयर और कंसर्न बताया था...
फिर
ये डाँटने,रोने और मनाने
का क्रम यूँ ही चलता रहा..
कुछ दिनों बाद उसने मुझे मारा
मैं चीखती रही पर मैंने अपने निजी जीवन को
रोड पर लाना जरूरी नहीं समझा..
दो दिन बाद उसने मुझे मनाया
मैं मान गई इस उम्मीद में कि
हो सकता है आगे सुधार कर लें...
ये क्रम थोड़ा कम हुआ तो मुझे लगा
मेरा निर्णय ठीक था पार्टनर चुनने का...
पर आज जब उसकी मारपीट ने
मुझे मृत्युशैया तक पहुँचा दिया है
तब मुझे लग रहा है कि
जीवन में हर चीज से
समझौता कर लेना ठीक है...
पर निजी जीवन को टाक्सिक बनाकर
हर रोज प्रताणित करने को "केयर और कंसर्न"
बताने वाले व्यक्ति के साथ समझौता कर लेना बिल्कुल ठीक नहीं है...
~ नीलाक्ष मिश्रा, गोरखपुर
शिक्षा - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी
वर्तमान - Researcher on RLV rocket project (ISRO) And Intern at IIT Bombay.
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