समाज ये पचा नहीं पाता कि औरतें रसोई घर से निकलकर पुरुषों के बराबर खड़ी हो।
सच में समाज ने औरतों को बहुत सम्मान दिया.... किसी ने नरक काद्वार कहा... किसी ने नागिन कहा... किसी ने माया कहा...
औरत की सारी इज्जत... मान सम्मान.... एक छोटे से स्थान में केन्द्रित कर दिया गया और उसको योनि कहा गया....
यदि बलात्कार हो गया तो औरत की संपूर्ण इज्जत लुट गई.....
बाकी औरत के व्यक्तित्व में कहीं इज्जत नहीं होती.... न उसके संस्कार ... न उसके चरित्र में.... न उसके आचार व्यवहार में...
आपने उसको खूब सम्मान दिया.... औरत को आपने सती बनाया... देवदासी बनाया.... पराया धन बनाया...
जब आपने नारी के सौन्दर्य की व्याख्या की तो हिरणी सी आँखे... नागिन से बाल.... आदि.... जो भी स्त्री में आपने देखा वो जानवरों वाला देखा....
आपने स्त्री के जननांगों पर गालियाँ बनाई... किसी व्यक्ति को अपमानित करने का सबसे आसांन तरीका.... उसकी माँ बहन के जननांगों पर बनी गाली देना... क्यूँकि स्त्री की संपूर्ण इज्जत का भण्डार वहीं था....
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आपने न सीता को सम्मान दिया.... न मीरा को..न दिव्या को और न तसलीमा नसरीन को.... आपने बस भाषण दिए हैं....
एक उदहारण बता दीजिए कि आपने किस बागी औरत को स्वीकार किय़ा....
समय आने पर न आप पद्मावती लिए खड़े हुए और न फूलन देवी के लिए...
आपने सिर्फ़ शक्ति को सम्मान दिया है.... सिर्फ़ ताकत को.... विजय को....इतिहास गवाह है.... कितने उदाहरण लेंगे मुझसे....
अपना अनुभव कह रही... ये कोई किताब की बातें नहीं हैं कि आज भी पुरुष औरत को अपने बराबर मंच साझा करने में हिचकता है....
समाज ये पचा नहीं पाता कि औरत सेक्स से लेकर सेन्सेक्स तक तका हर मुद्दे पर बात करे....
राजनीति, अर्थनीति, आदि विषय पर आज भी जब एक महिला के तौर पर मैं अपने विचार रखती हूँ तो लोग कह देते हैं कि जाइए आप जानती क्या हैं.... जाइए मुझे मत बताइये...
असल में वो कहना ये चाहते हैं कि जाइए ये आपका विषय नहीं है.... आपका विषय है खाने की नई नई रेसिपी बताना....
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माफ़ करें परन्तु समाज में कभी स्त्री, और दलित को बराबरी का अधिकार न मिला है और न फिलहाल ऐसी सम्भावना है.... लेकिन अब समाज में एक तबका हम जैसी चरित्रहीन (आपके शब्दों में) महिलाओं का भी है.....
ओशो को पढ़ती हैं.... मंटो को पढ़ती हैं.... तस्लीमा नसरीन और प्रभा खेतान को पढ़ती हैं... और खुशवंत सिंह को भी.... कविता लिखती हैं.... राजनीति में रुचि लेती हैं... हर मुद्दे पर बात करती हैं...अपने फ़ैसले ख़ुद लेती हैं.... खुलकर हँसती हैं...
पूर्वी से लेकर पश्चिम तक के परिधान धारण करती हैं...उफ्फ कितनी थोथी है अर्धनारीश्वर की धारणा.....
The writer is Abha Shukla (freelance writer)
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