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इंदिरा की राजनीतिक विरासत और प्रियंका के मजबूत इरादे

Updated: Aug 5, 2022

यह जरूरी नहीं कि औलाद अपने पूर्वजों की ऊंचाई तक पहुंच सके। कई मामलों में दूर-दूर तक औलाद में कोई लक्षण नहीं होते, जो पूर्वजों में हुआ करते थे। हाल ही में प्रियंका गांधी की कार्यक्षमता और प्रदर्शन को देख सकते हैं। यह देखकर कहा जा सकता है कि अपनी दादी इंदिरा गांधी के पदचिह्नों पर चल रहीं हैं। हाथरस में दलित बच्ची के साथ दुष्कर्म कर हत्या मामले में जो बहादुरी व विवेक दिखाई, उससे प्रियंका में इंदिरा गांधी के लक्षण दिखने लगे थे। इंदिरा गांधी बेल्छी (बिहार) में मारे गए दलितों को विषम परिस्थितियों में देखने गईं थीं। तब वह राष्ट्रीय मुद्दा बना। हाल में लखीमपुर खीरी में कुचले गए किसानों और आगरा में पुलिस कस्टडी में दलित की हत्या के मुद्दे को प्रियंका ने जिस तरह उठाया और लड़ा, इससे अब कोई संशय ही नहीं रह गया कि यह दूसरी इंदिरा गांधी नहीं हैं। हाथरस के मामले में जाते वक्त जब देखा कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को पुलिस लाठियों से पीट रही थी, तो बिना समय गंवाए दौड़कर पुलिस की लाठी के सामने खड़ी हो गईं। उनका बचाव किया। यह असाधारण साहसिक कदम था। एक घटना मुझे और स्मरण में है कि सपेरे के साथ बैठकर सांप को बहुत सहजता से देखा और छुआ, जबकि साधारण व्यक्ति दूर से ही ऐसे जंतु को देखकर डर जाता है।


विषम परिस्थितियों में पार्टी के लिए लड़ रहीं प्रियंका

सफलता व्यक्ति की दृढ़ता, बौद्धिक क्षमता व दूरदर्शिता जरूरी होती, लेकिन कई बार परिस्थितियों की भूमिका कहीं ज्यादा होती है। प्रियंका गांधी जिन परिस्थितियों में लड़ रहीं हैं, वह काबिले तारीफ है। परिस्थितियां पक्ष में नहीं दिखती। यहां कांग्रेस पार्टी के प्रादुर्भाव, सफलता व वर्तमान पर चर्चा किये बगैर मूल्यांकन नहीं किया जा सा सकता है। कांग्रेस पार्टी की स्थापना विदेशी ताकत (अंग्रेजों) के खिलाफ हुई थी। उस समय जाति-धर्म और क्षेत्रवाद आड़े नहीं आया। स्वतंत्रता आंदोलन में कमोवेश सबकी भागीदारी थी। इस तरह अपनों से लड़ने की इतनी बड़ी चुनौती नहीं थी। अंग्रेज क्रूर और तानाशाह जरूर थे, जो सामने दिखता था उनके खिलाफ कांग्रेस लडती गयी। एक-एक कर जीत हासिल करती गई।


जब लोग कहते की कांग्रेस ने क्या किया, तो यह चुभता

सबसे ज्यादा चुभने वाली वो बात है कि आज कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस ने क्या किया? जबसे भारत भूमि पे मानव इतिहास की जानकारी है, अंग्रेजी साम्राज्यवाद के बारे में कहा जाता था कि उनके राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता था। जब भविष्य के नतीजों के बारे में न पता हो तो ऐसे में अपनी जिंदगी जेल या मौत के हवाले कर देना कोई साधारण बात नहीं है। नेहरू जी लगभग नौ साल जेल में थे। तब गांधी जी भी सात साल जेल में रहे। क्या इनको पता था कि कभी जेल से छूटेंगे? उस समय किसी को भी भविष्य का अनुमान नहीं था। प्रियंका गांधी ऐसी वारिस की उपज हैं।


झूठ, धनशक्ति व मीडिया नियंत्रण वाली सरकार से लड़ाई

वर्तमान में जिनके खिलाफ लडाई है, उन्होंने झूठ, दुष्प्रचार, धनशक्ति, मीडिया नियंत्रण, धोखेबाजी व जासूसी का सहारा ले रहा है। अंग्रेज संसाधनों का शोषण करने आये थे। वो दिख रहा था। उनको रोकने जो आता था वे बल प्रयोग और विभाजन की नीति अपनाते थे। कुछ मायनों में वो लड़ाई सीधी थी। अब तो आंतरिक कुटिल-कमीन शक्तियों से लड़ना पड़ रहा है। देश में तमाम क्षेत्रीय दल और राजनेता हैं, लेकिन प्रमुख मुद्दों पर क्यूं नहीं कुछ करते। करना तो दूर, बोलते तक नहीं। चीन भारत में घुसपैठ करके बैठा है। क्या राहुल गांधी की ही चिंता है? आक्सीजन, दवा व बेड न मिलने से लाखों लोग मर गए। कांग्रेस पार्टी के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों ने इन मुद्दों को ठीक से उठाया भी नहीं। संविधान बचाने की बात, सरकारी संपत्तियों की बिक्री, मानवाधिकार का हनन और सरकारी संस्थाओं का अतिक्रमण, क्या यह चिंता केवल कांग्रेस की है? ऐसा भी नहीं है कि क्षेत्रीय दल या सिविल सोसाइटी को बेचौनी नहीं है, लेकिन उनमें हिम्मत नहीं है।


जिसने भी आवाज उठाई उनके खिलाफ पड़ने लगे छापे

एक सवाल बार-बार किया जाता है कि कांग्रेस पार्टी क्या कर रही है? यह बता देना चाहिए कि आजादी से लेकर 2014 तक की परिस्थितियों में ही सबको राजनीति करने का अनुभव व तरीक़ा था, लेकिन उसके बाद परिस्थितियां इतनी ज्यादा बदल गईं, जिसमे विपक्ष डर और सहम गया। जिसने आवाज़ उठायी, उनके खिलाफ ईडी, इनकम टैक्स, सीबीआई आदि मशीनरी का बर्बरता से इस्तेमाल किया गया। इसे और बेहतर समझने के लिए 2012-13 के अन्ना आन्दोलन पर नज़र डालनी पड़ेगी। रामलीला मैदान के नौ दिन के आंदोलन को लगभग सारे चैनलों ने सरकार के खिलाफ लाइव दिखाया। आज हालात यह है कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी के प्रेस कांफ्रेंस को भी लाइव नहीं दिखाया जाता। उस समय के अख़बारों को उठाकर देखा जाय तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनजी की खबरें न के बराबर होती थीं। लगभग 2011 से विभिन्न मुद्दे कोल व टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले के मुद्दों पर उस समय की सरकार के खिलाफ लिखने के अलावा कोई और खबर शायद ही होती थी। बाद में दोनों आरोप निराधार साबित हुए। यह जवाब उनके लिए है, जो कहते हैं कि कांग्रेस क्या कर रही है? उनको यह बात और जाननी चाहिए कि उस समय की सिविल सोसाइटी अन्ना आंदोलन की ताकत थी, जो आज बिल में घुस गयी है।


देश में विकास की राजनीति होती तो 2019 में होती कांग्रेस सरकार

देश में शासन-प्रशासन व विकास को लेकर राजनीति होती, तो कांग्रेस 2019 में ही सरकार बना लेती। भाजपा चुनाव न जीत पाती। संघ की विचारधारा की राजनीतिक सत्ता सामाजिक व सांस्कृतिक के मुकाबले तुच्छ है। यहीं पर विपक्ष कमजोर पड़ जाता है। राम मंदिर बनाना, धार्मिक आयोजन, इस्लाम से हिन्दू धर्म की रक्षा, भारत सोने की चिड़िया था और पुनः बनाना है... आदि के प्रचार के सामने रोजगार, विकास, शिक्षा व स्वास्थ्य आदि महत्वहीन लगते हैं। आम जनता को स्वर्ग व नर्क का सपना दिखाकर भ्रमित व ब्रेन वाश कर दिया गया है। इतनी विषम परिस्थितियों से इंदिरा गांधी को भी जूझना न पडा होगा। ऐसे में प्रियंका गांधी को यह कहना कि वे इंदिरा गांधी की प्रतिमूर्ति हैं, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रियंका एक दिन इंदिरा गांधी की स्थान लेंगी, अब ऐसा लगने लगा है।


डॉ. उदित राज, पूर्व सांसद सह राष्ट्रीय प्रवक्ता कांग्रेस।




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