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"बेबस लोग, टूटती सांसे, आंखें देख रहीं हैं दिल्ली"

Updated: Aug 5, 2022

"ऑक्सीजन नहीं, दवा नहीं , बिस्तर नहीं, डॉक्टर नहीं, श्मशान नहीं , रोजगार नहीं--- आम इंसान असहाय है। मुझे इसके लिए हुक्मरानों से कोई शिकवा नहीं। आपने भी वोट देने से पहले कभी इन सब की मांग की नहीं थी।..."

भारत में कोरोना 2020 से '21 में आ चुका है। जिस कोरोना को अपने असर में 19 यानी कम होना चाहिए, वह 21 यानी और खतरनाक हो गया है। पूरे एक साल बाद भी कोरोना का कहर जारी है। सरकारी तंत्र ख़ासकर स्वास्थ्य व्यवस्था कोलैप्स नहीं एक्सपोज हो रही है। किसी वक्त में सरकारी प्रवक्ता बने अनेक साथी भी सरकारी तंत्र से खफा हैं। सीमित संसाधनों में काम कर रहा प्रशासनिक अमला जनता के सामने नंगा और बेबस है।


वर्ष 2021 में कोरोना ने एक दूसरी ही तरह का भयावह दृश्य उपस्थित किया है। अस्पतालों के बाहर लोग बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन और वेंटिलेटर के अभाव में दम तोड़ रहें हैं।



@covid-19 Emergency help Room पर कल ही पोस्ट हुई कुछ अपील इस तरह की थी...

  • "बहुत ही ज्यादा अर्जेंट है प्लीज देख लीजिए आप लोग 🙏🙏🙏

गोरखपुर के किसी भी कोने में कोई भी हॉस्पिटल में ऑक्सीजन बेड बताइए!" (Abhay prayagraj)

  • अर्जेंट ........ अर्जेंट .............Ventilator ........की जरूरत है वाराणसी में। (Shashi Ranjan)

@Medical help group पर अभी कल ही पोस्ट हुई कुछ अपीलें इस तरह की हैं...

  • "एक पेशेंट है प्रयागराज मे उनको हॉस्पिटल में वेंटीलेटर बेड नही मिल रहा है बहुत ही सीरियस है तत्काल बेड की आवश्यकता है कोई मदद मिल सकती है।" (प्रयागराज)

  • Urgently Need oxygen supported bed in Jaunpur (Ankesh Kumar)

  • Urgent required hospital bed in prayagraj for covid antigen negative typhoid patient please help me. (AK Patel)

इन परिस्थितियों में लोग डॉक्टर और अन्य प्रशासनिक लोगों पर हमलावर हो जा रहे हैं, यह ठीक नहीं है।


देश में मौजूदा परिस्थितियों ख़ासकर कोरोना से उपजे हालातों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी ने अपने फेसबुक वॉल पर 18 अप्रैल 2021 को लिखा, "ऑक्सीजन नहीं, दवा नहीं , बिस्तर नहीं, डॉक्टर नहीं, श्मशान नहीं , रोजगार नहीं--- आम इंसान असहाय है। मुझे इसके लिए हुक्मरानों से कोई शिकवा नहीं। आपने भी वोट देने से पहले कभी इन सब की मांग की नहीं थी।..."


पंकज चतुर्वेदी एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और कोरोना पीड़ितों के मदद के लिए हर संभव प्रयास भी कर रहें हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर चितरंजन कुमार ने 20 अप्रैल 2021 को अपने फेसबुक वॉल पर लिखा,

"अगर हमारी स्वास्थय सेवाएं दुरूस्त होती तो शायद हजारों लोग बच जाते। प्रदेश और देश में हाहाकार मचा हुआ है पर वर्तमान स्थिति में शासन-प्रशासन के पास एक गहरी चुप्पी के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। जब चारों तरफ सन्नाटा होना चाहिए था तब हरिद्वार में कुंभ सजाया गया। बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए। क्या हमने सच में कोरोना से लड़ने का प्रबंध किया है ?? हम सब अपनी आंखों का पानी खो कर मंगल पर पानी खोज रहे हैं।"


मशहूर युवा पत्रकार कृष्णकांत ने 20 अप्रैल 2021 को ही अपने फेसबुक पोस्ट में 'मेरा भाषण ही शासन है' शीर्षक से एक लंबा आलेख लिखा, जिसका अंश इस प्रकार है.

"अस्पताल में बेड नहीं हैं. वेंटिलेटर और आईसीयू बेड नहीं हैं. एंबुलेंस नहीं मिल रही हैं. पूरे देश में दवाओं की कालाबाजारी की खबरें हैं. ऑक्सीजन के लिए मारपीट तक हो रही है. सप्लाई चेन ध्वस्त हो चुकी है. मरीजों से या उनके परिजनों से कहा जा रहा है कि ऑक्सीजन खुद लेकर आओ. रेमिडेसिविर खुद लाओ. दूसरी कई जरूरी दवाएं नहीं मिल रही हैं. राजधानी दिल्ली से लेकर मुंबई तक, सब जगह अस्पतालों में बेड नहीं हैं. लोगों को टेस्ट रिपोर्ट के लिए हफ्ते भर तक इंतजार करना पड़ रहा है. अस्पताल के बाहर लोग जीवन की एक एक सांस गिन रहे हैं. श्मशान के बाहर लाशों की कतारें लगी हैं. पूरे देश में हाहाकार है. लोग फोन और ट्वीट करते करते जान गवां दे रहे हैं. मजदूर फिर से पलायन कर रहे हैं.... लोग ये करें, लोग वो करें, बच्चे ये करें, जवान वो करें, बूढ़े ये करें, डॉक्टर वो करें... निरर्थक भाषण मरते हुए किसी एक व्यक्ति को भी नहीं बचा सकता.


भाषण के शासन को जानकर कुछ लोग कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए सोशल मीडिया में गुहार लगा रहें हैं। इसी सोशल मीडिया के माध्यम से लोग कोरोना पीड़ितों की सहायता के लिए अपने समय और स्वास्थ्य को नजरअंदाज़ कर चुके हैं। प्रयागराज शहर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुछ साथी तो @covid-19 Emergency help Room और @medical help group नामक फेसबुक ग्रुप से भी मदद पहुंचा रहे हैं। मदद की इस मुहिम में लोग जुड़ रहें हैं। हम, आप भी दवाई, इंजेक्शन, आक्सीजन, भोजन आदि उपलब्ध करा करके या इसकी उपलब्धता से संबंधित सटीक जानकारी साझा करके इस मुहिम को और धार दे सकते हैं।


मदद की इस मुहिम में शामिल होकर लोग अपने मनुष्य होने के अर्थ को साकार कर रहे हैं। इस मुहिम से जुड़कर ऐसे बहुत से अनाम लोगों के बारे में जानने को मिलेगा जो मनुष्यता के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं। जो केवल माध्यम ही नहीं, केवल सूचना साझा करने तक ही नहीं बल्कि पीड़ितों के बीच जाकर काम कर रहें हैं।


The writer is Young Scholar & freelance writer


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